जन लोकपाल पर जारी सियासी संग्राम के बीच उत्तराखंड ने भ्रष्टाचार पर लगाम कसने के लिए लोकायुक्त विधेयक पारित किया है। उत्तराखंड की दूसरी बार कमान थामने वाले मुख्यमंत्री भुवनचंद्र खंडूरी ने इस चर्चित लोकायुक्त विधेयक पर संजय मिश्र से बातचीत की-
:- जन लोकपाल पर जारी जंग में केंद्र सरकार अन्ना हजारे के बिल को सांविधानिक ढांचे के खिलाफ मानती है। आपका लोकायुक्त बिल इस कसौटी पर कितना खरा है?
अन्ना का जन लोकपाल बिल किस तरह संविधान के खिलाफ है, यह तो केंद्र बताएगा। मगर मैं पूरी जिम्मेदारी के साथ यह कहूंगा कि उत्तराखंड विधानसभा से पारित लोकायुक्त विधेयक कानून और संविधान की कसौटी पर खरा उतरता है। यदि इसमें कोई खामी होती, तो इसे राज्यपाल की मंजूरी नहीं मिल पाती।
:- उत्तराखंड लोकायुक्त विधेयक हू-ब-हू जन लोकपाल बिल की तरह नहीं है, इसके बावजूद टीम अन्ना आपको अपना पोस्टर ब्यॉय बना कर इसे मॉडल बिल के रूप में संसदीय समिति और केंद्र दोनों के सामने क्यों पेश कर रही है?
इसकी वजह जन लोकपाल बिल के प्रावधानों के साथ हमारे लोकायुक्त विधेयक में व्यावहारिक ही नहीं, भ्रष्टाचार के खिलाफ कदम उठाने के लिए कानूनी तंत्र के गठन की बात है। जन लोकपाल में केवल एक व्यक्ति पर आधारित संस्था की बात है, जबकि उत्तराखंड के लोकायुक्त विधेयक के जरिये हमने व्यक्ति को नहीं, लोकायुक्त संस्था का निर्माण किया है। इसमें पांच से सात सदस्य होंगे और एक व्यक्ति कोई फैसला नहीं कर पाएगा। इसमें अधिनायकवाद के उभरने की आशंकाओं को पहले ही दूर कर दिया गया है। हमने यह बात टीम अन्ना को बिल पर मशविरे के दौरान समझा दी थी और वे इससे सहमत हैं। हमने लोकायुक्त संस्था को आर्थिक स्वतंत्रता भी दी है ताकि उस पर सरकार का दबाव न हो।
:- विरोधी यह सवाल उठा रहे हैं कि आपका यह लोकायुक्त विधेयक भ्रष्टाचार के खिलाफ कठोर कदम उठाने की मंशा से ज्यादा उत्तराखंड के अगले विधानसभा चुनाव में भाजपा की मुश्किलों को रोकने का आखिरी दांव है?
विरोधी चाहे जो कहें, मगर मैंने भाजपा नहीं, प्रदेश के हित में लोकायुक्त विधेयक को दिन-रात एक कर मुकाम पर पहुंचाया है। भ्रष्टाचार के महारोग से परेशान आम आदमी को काम हो जाने का अधिकार देने और भ्रष्ट तंत्र पर चोट करने को यदि राजनीति ठहराया जाता है, तो मुझे यह कहने में संकोच नहीं कि ऐसी राजनीति मैं हमेशा करूंगा।
:- लोकायुक्त विधेयक चुनाव से चंद महीने पहले ही क्यों लाया गया?
सरकारी फैसलों की एक प्रक्रिया होती है और मुख्यमंत्री बनने के तुरंत बाद मैंने पहल शुरू कर दी। मैंने कानून-संविधान के विशेषज्ञों से मशविरा किया और टीम अन्ना से चर्चा कर विधेयक न केवल तैयार कराया, बल्कि विधानसभा से पारित कराना भी सुनिश्चित किया। इसमें केवल राजनीति ही रहती, तो विपक्ष कैसे समर्थन करता।
:- जन लोकपाल पर केंद्र का जो रुख अब तक है, उसे देखते हुए उत्तराखंड के लोकायुक्त विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने में दिक्कत आने की आशंका है?
मुझे विधेयक को रोके जाने का कोई कारण नजर नहीं आ रहा। अगर राष्ट्रपति के यहां विधेयक रुकता है, तो फिर केंद्र सरकार को बताना पड़ेगा कि किस वजह से इसे रोका जा रहा है। ऐसी स्थिति आती है, तो हम उसका जवाब देने के लिए पूरी तरह तैयार हैं।
:- जन लोकपाल पर जारी जंग में केंद्र सरकार अन्ना हजारे के बिल को सांविधानिक ढांचे के खिलाफ मानती है। आपका लोकायुक्त बिल इस कसौटी पर कितना खरा है?
अन्ना का जन लोकपाल बिल किस तरह संविधान के खिलाफ है, यह तो केंद्र बताएगा। मगर मैं पूरी जिम्मेदारी के साथ यह कहूंगा कि उत्तराखंड विधानसभा से पारित लोकायुक्त विधेयक कानून और संविधान की कसौटी पर खरा उतरता है। यदि इसमें कोई खामी होती, तो इसे राज्यपाल की मंजूरी नहीं मिल पाती।
:- उत्तराखंड लोकायुक्त विधेयक हू-ब-हू जन लोकपाल बिल की तरह नहीं है, इसके बावजूद टीम अन्ना आपको अपना पोस्टर ब्यॉय बना कर इसे मॉडल बिल के रूप में संसदीय समिति और केंद्र दोनों के सामने क्यों पेश कर रही है?
इसकी वजह जन लोकपाल बिल के प्रावधानों के साथ हमारे लोकायुक्त विधेयक में व्यावहारिक ही नहीं, भ्रष्टाचार के खिलाफ कदम उठाने के लिए कानूनी तंत्र के गठन की बात है। जन लोकपाल में केवल एक व्यक्ति पर आधारित संस्था की बात है, जबकि उत्तराखंड के लोकायुक्त विधेयक के जरिये हमने व्यक्ति को नहीं, लोकायुक्त संस्था का निर्माण किया है। इसमें पांच से सात सदस्य होंगे और एक व्यक्ति कोई फैसला नहीं कर पाएगा। इसमें अधिनायकवाद के उभरने की आशंकाओं को पहले ही दूर कर दिया गया है। हमने यह बात टीम अन्ना को बिल पर मशविरे के दौरान समझा दी थी और वे इससे सहमत हैं। हमने लोकायुक्त संस्था को आर्थिक स्वतंत्रता भी दी है ताकि उस पर सरकार का दबाव न हो।
:- विरोधी यह सवाल उठा रहे हैं कि आपका यह लोकायुक्त विधेयक भ्रष्टाचार के खिलाफ कठोर कदम उठाने की मंशा से ज्यादा उत्तराखंड के अगले विधानसभा चुनाव में भाजपा की मुश्किलों को रोकने का आखिरी दांव है?
विरोधी चाहे जो कहें, मगर मैंने भाजपा नहीं, प्रदेश के हित में लोकायुक्त विधेयक को दिन-रात एक कर मुकाम पर पहुंचाया है। भ्रष्टाचार के महारोग से परेशान आम आदमी को काम हो जाने का अधिकार देने और भ्रष्ट तंत्र पर चोट करने को यदि राजनीति ठहराया जाता है, तो मुझे यह कहने में संकोच नहीं कि ऐसी राजनीति मैं हमेशा करूंगा।
:- लोकायुक्त विधेयक चुनाव से चंद महीने पहले ही क्यों लाया गया?
सरकारी फैसलों की एक प्रक्रिया होती है और मुख्यमंत्री बनने के तुरंत बाद मैंने पहल शुरू कर दी। मैंने कानून-संविधान के विशेषज्ञों से मशविरा किया और टीम अन्ना से चर्चा कर विधेयक न केवल तैयार कराया, बल्कि विधानसभा से पारित कराना भी सुनिश्चित किया। इसमें केवल राजनीति ही रहती, तो विपक्ष कैसे समर्थन करता।
:- जन लोकपाल पर केंद्र का जो रुख अब तक है, उसे देखते हुए उत्तराखंड के लोकायुक्त विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने में दिक्कत आने की आशंका है?
मुझे विधेयक को रोके जाने का कोई कारण नजर नहीं आ रहा। अगर राष्ट्रपति के यहां विधेयक रुकता है, तो फिर केंद्र सरकार को बताना पड़ेगा कि किस वजह से इसे रोका जा रहा है। ऐसी स्थिति आती है, तो हम उसका जवाब देने के लिए पूरी तरह तैयार हैं।